एमडी-एमएस के लिए नीट खत्‍म करने का प्रस्‍ताव, विरोध में हैं मेडिकल छात्र

एमडी-एमएस के लिए नीट खत्‍म करने का प्रस्‍ताव, विरोध में हैं मेडिकल छात्र

सेहतराग टीम

देश में एमबीबीएस के बाद के पाठ्यक्रमों में प्रवेश दुरूह चुनौती होती है। पूरे देश के एमबीबीएस डॉक्‍टर इन पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए अलग-अलग प्रवेश परीक्षाओं में बैठते हैं और इनमें से चंद खुशनसीबों को ही एमडी-एमएस जैसे स्‍नातकोत्‍तर पाठ्यक्रमों में प्रवेश मिल पाता है। मगर अब केंद्र सरकार ने स्‍नातकोत्‍तर पाठ्यक्रमों के लिए अलग से प्रवेश परीक्षा आयोजित किए जाने की परिपाटी पर रोक लगाने का प्रस्‍ताव रखा है। हालांकि मेडिकल छात्र इन प्रस्‍तावों का कड़ा विरोध कर रहे हैं।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने चिकित्सा क्षेत्र में स्नातकोत्तर में प्रवेश के लिए मेडिकल छात्रों को राहत देते हुए ‘नीट’ को खत्म करने का प्रस्ताव किया है और कहा है कि एमडी तथा एमएस पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए एमबीबीएस की अंतिम वर्ष की परीक्षा को ही आधार माना जाएगा। यानी इस परीक्षा में बेहतर अंक लाने वाले डॉक्‍टरों को स्‍नातकोत्‍तर में सीधे दाखिला मिल सकेगा। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) विधेयक के संशोधित मसौदे में इस संशोधन को शामिल किया गया है और इसे जल्द ही कैबिनेट को भेजा जाएगा। सूत्रों के अनुसार प्रधानमंत्री कार्यालय के निर्देश पर विधेयक में बदलाव शामिल किए गए हैं।
प्राप्‍त जानकारी के अनुसार ताजा एनएमसी विधेयक में किए गए संशोधनों के अनुरूप स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में प्रवेश नेशनल एग्जिट टेस्ट (एनईएक्सटी) के परिणामों के आधार पर होगा, जो देशभर में साझा परीक्षा के रूप में होगा। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने पूरे देश के एमबीबीएस के सभी छात्रों के लिए अंतिम वर्ष की परीक्षा एक साथ आयोजित करने का फैसला किया है जिसे नेशनल एक्जिट टेस्‍ट (नेक्‍स्‍ट) नाम दिया गया है। ये एमबीबीएस के साढ़े पांच साल की पढ़ाई के बाद आयोजित होगा और इसे पास करने के बाद भी डॉक्‍टर के रूप में प्रैक्टिस करने का लाइसेंस मिलेगा। अब सरकार के नए संशोधनों के बाद जो छात्र एमबीबीएस की इस अंतिम परीक्षा को पास करने के साथ-साथ इसमें सबसे अच्‍छे नंबर लाएंगे उन्‍हें स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में सीधे प्रवेश मिल जाएगा।

वैसे मेडिकल पेशेवरों का एक खेमा सरकार की इस पहल का जोरदार विरोध कर रहा है और कह रहा है कि इससे छात्रों के मेडिकल पढ़ाई के साल अनावश्‍यक रूप से बढ़ जाएंगे जो कि पहले से ही किसी भी दूसरे प्रोफेशन के मुकाबले ज्‍यादा होते हैं। गौरतलब है कि देश में किसी भी प्रोफेशनल कोर्स की पढ़ाई में उतना समय नहीं लगता जितना डॉक्‍टरी की पढ़ाई में लगता है। एमबीबीएस के साढ़े पांच साल के बाद स्‍पेशलाइजेशन के कम से कम दो साल और उसके बाद भी अपने फील्‍ड में अनुभव के दो से तीन साल और जोड़ दें तो एक डॉक्‍टर को सही तरीके से अपना काम शुरू करने में कम से कम दस से 11 साल लग जाते हैं। यानी 30 से 31 वर्ष की उम्र में एक डॉक्‍टर सही मायने में अपना कॅरिअर शुरू कर पाता है। डॉक्‍टरों का कहना है कि नेक्‍स्‍ट के कारण अब एमबीबीएस ही नहीं आगे की पढ़ाई में देर होने का खतरा रहेगा। अभी किसी एमबीबीएस डॉक्‍टर के पास ये विकल्‍प है कि एमबीबीएस में किसी भी वजह से नंबर खराब होने के बावजूद वो स्‍नातकोत्‍तर प्रवेश परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन कर सकता है मगर नई व्‍यवस्‍था में उससे यह सुविधा छिन जाएगी। यही नहीं किसी भी वजह से नेक्‍स्‍ट में नंबर ठीक नहीं आए तो उसे स्‍नातकोत्‍तर के लिए अगले साल फ‍िर से नेक्‍स्‍ट में ही बैठना होगा। इससे उसकी पढ़ाई के साल बढ़ते चले जाएंगे। इन सभी बातों को ध्‍यान में रखकर मेडिकल छात्र भी सरकार के इस प्रस्‍ताव का विरोध कर रहे हैं।

नेक्‍स्‍ट क्लियर करने वाले छात्रों को प्रैक्टिस के लिए लाइसेंस हासिल करने के वास्ते भी अलग से परीक्षा में नहीं बैठना होगा। सूत्रों ने हालांकि कहा कि अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए अलग से परीक्षा पास करना पहले ही तरह की अनिवार्य रहेगा। इसके साथ ही नीट-सुपर स्पेशलिटी भी जारी रहेगा जो डीएम/एमसीएच पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा है।

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